Monday 25 May 2015

.....छपने लगे है अखबार में














ताकत भी हो सारी दुनिया की अगर इख्तियार में              
जब भी चाहतें हमारी होगीं, बस तेरे इक दीदार में
॰॰

लडकर तो जीत ली है सारी लडाईयां जमाने की पर
बिना लडे ही दिल हार बैठे है, हम तेरे इस प्यार में
॰॰

माना फूलों की सारी खूबियां है तुममे ए-दोस्त पर
महकना भूलाएगा तुझे, वो महक है मेरे किरदार में
॰॰

कीमत है यहां इस दुनिया में, कुछ न कुछ सबकी
हम सा नही मिलेगा जा, ढूढंले जाके पूरे बाजार में
॰॰

जिन्दगी के चलन में खुद को भी भूल चुके थे हम
अब ये मसरूफियतें भी कटती है तेरे ही इंतजार में
॰॰

धीरज का समन्दर भी अब तो सूखने को ही है मेरा
इतनी देर करदी है मेरे हमदम तुमने इस इजहार में
॰॰

बहुत फायदा हुआ है तेरी इस बेरूखी का भी हमे तो
शायरी मे दम आ गया, हम छपने लगे है अखबार में


जितेन्द्र तायल
मोब 9456590120



(स्वरचित) कॉपीराईट © 1999 – 2015 Google इस ब्लॉग के अंतर्गत लिखित/प्रकाशित सभी सामग्रियों के सर्वाधिकार सुरक्षित हैं। किसी भी लेख/कविता को कहीं और प्रयोग करने के लिए लेखक की अनुमति आवश्यक है। आप लेखक के नाम का प्रयोग किये बिना इसे कहीं भी प्रकाशित नहीं कर सकते। कॉपीराईट © 1999 – 2015 Google

Monday 18 May 2015

बेटी बचाओ















खाना-पीना मजे करना, कोई जिम्मेदारी नही निभाते है          
इस मस्ती मे जानते ही नही ये जीवन कैसे बिताते है
बच्चे होने से पहले तो सब खुद बच्चे से होते है
बच्चे ही है जो जीवन मे आकर बडा हमे बनाते है

अपने बच्चो की खुशी को हम घोडा बन खिलाते है
अपने घुटनो का झूला भी बना, खूब उन्हे झुलाते है
पर क्या ये सच नही कि, अपना खोया बचपन है यें
इनको खिलाने के बहाने, हम खुद को ही बहलाते है

इस दुनिया के सारे जन्तु सन्तान पे जान लुटाते है
केवल सर्प ही सुने है जो अपने बच्चो को खाते है
ऐसा क्या अपराध किया उस नन्ही बिटिया ने की
हम विषधर बनने मे भी इक पल न सकुचाते है

कवि तो अपनी कलम से इस देश को तो जगाते है
पर देश तो हम सब देशवासी अपने घर से बनाते है
नारी अधिकारो पर लिखना तो अब फैशन हो गया है
क्या सचमुच अपने हम घर मे अपना धर्म निभाते है

 - जितेन्द्र तायल

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Tuesday 12 May 2015

सूरज को ही जग को जगाना होता है















निशाना निज लक्ष्य लगाना होता है               
पहला कदम खुद ही उठाना होता है
सूरज को जगाने जाता नही कोई
सूरज को ही जग को जगाना होता है

सपनो को लक्ष्य बनाना होता है
आंसू को पलकों में छुपाना होता है
हजार गम हो इस दिल में मगर
महफिल में तो मुस्कुराना होता है

जग का दुःख हर उठाना होता है
दिल से हर डर मिटाना होता है
लाख जलजले रोकने आयें हमें
पर यही तो घर बनाना होता है

अन्दर खुद के एक खजाना होता है
उस खजाने को ही तो पाना होता है
हर दर पर जाने की नही है जरूरत
बस उस के आगे सर झुकाना होता है

हर रिश्ते को बखूबी निभाना होता है
गैरों को भी दिल से अपनाना होता है
आसान नही है इक इसांन हो जाना
खुद को भूल दूसरो का हो जाना होता है


- जितेन्द्र तायल


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Wednesday 6 May 2015

देख लो.................












अभिमान से हुआ कोई काम देख लो                         
कंस, रावण सभी का परिणाम देख लो
अभिमान छोड्ना पडा जगदीश को यहां
मुरारी ने लिया रणछोड नाम देख लो

अन्तर्मन में था कोहराम देख लो
नेकी ओ बदी में था संग्राम देख लो
जीती नेकनियत बदी की हार हुई तो
शान्त हुआ चित पडा आराम देख लो

तिनका चुगते हंस से गुणवान देख लो
कौवे को मोतियों का सम्मान देख लो
क्या चाहा था क्या हो गया अब, अपने
जग की हालत करुणानिधान देख लो

खोखली सरकारो का निजाम देख लो
क्या खूब किया है इन्तजाम देख लो
इनके मुआवजे की राह तकते-तकते
किसान हुआ नीलाम सरेआम देख लो

पत्थर के इसांन और मकान देख लो
बिकने को ही है सारा सामान देख लो
रिश्ते भी हो गये कारोबार का जरिया
जहनो में चलती-फिरती दूकान देख लो

-जितेन्द्र तायल
 मोब. 9456590120

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