Friday 14 August 2015

इस मिट्टी में राम कृष्ण भी खेले है

















मत समझो हमको इस मिट्टी मे अकेले है 
संस्कारो के इसमे रमते कितने ही मेले है
ये मिट्टी है मथुरा की और काशी की
याद रहे इसमे राम कृष्ण भी खेले है

ये मिट्टी नही है मिट्टी ये है चन्दन गाता हूं
मातृ भूमि के चरणो मे अभिनन्दन गाता हूं  ……………………….१

इस धरती पर पावन नदियां बहती है
गौरव गाथा सदियों की यह कहती है
नदियो का भी अतुल सम्मान यहां
गंगा मां बन के भारत मे रहती है

गंगा जल से मैं तिलक लगाता हूं
मातृ भूमि का महिमा मंडन गाता हूं                        
ये मिट्टी नही है मिट्टी ये है चन्दन गाता हूं
मातृ भूमि के चरणो मे अभिनन्दन गाता हूं  ……………………….२


भगत सिंह सा लाल यहां
बने शिवाजी महाकाल यहां
यहां बुद्ध, गांधी, सुभाष
भारत मां के कितने ही भाल यहां

अमर शहीदो के चरणो मे शीश नवाता हूं
मृत्यु का किया वीरो ने आलिंगन गाता हूं
ये मिट्टी नही है मिट्टी ये है चन्दन गाता हूं
मातृ भूमि के चरणो मे अभिनन्दन गाता हूं  ……………………….३





जितेन्द्र तायल
मोब. ९४५६५९०१२०
(स्वरचित) कॉपीराईट © 1999 – 2015 Google इस ब्लॉग के अंतर्गत लिखित/प्रकाशित सभी सामग्रियों के सर्वाधिकार सुरक्षित हैं। किसी भी लेख/कविता को कहीं और प्रयोग करने के लिए लेखक की अनुमति आवश्यक है। आप लेखक के नाम का प्रयोग किये बिना इसे कहीं भी प्रकाशित नहीं कर सकते। कॉपीराईट © 1999 – 2015 Google

Sunday 2 August 2015

कल सपने मे मुझको घर की मिट्टी दिखी है











कल सपने मे मुझको घर की मिट्टी दिखी है                    
फिर  कलम उठाकर मैने इक चिठ्ठी लिखी है

बडे-बुजुर्गो के चरणो मे वंदन लिखा है
जाने क्यो  बुझा-बुझा  है ये मन लिखा है
कौन हूं मै ये मुझको कौन बतायेगा
समझ ना आये क्या कहता है दर्पण लिखा है

सुबह सवेरे हमको रोज जगाती थी
गाडी की बजती  थी  वो सिट्टी लिखी है
कल सपने मे मुझको घर की मिट्टी दिखी है
फिर  कलम उठाकर मैने इक चिठ्ठी लिखी है

 सूना-सूना है घर का आगंन लिखा है
रूठा-रूठा हूं  खुद से ही हरदम लिखा है
 फूल या कलियां सब तो है इसमे, पर
कहां से लाये खुशबू  ये उपवन लिखा है

 लोट लगाते थे जिसमे  हम सुबह सवेरे ही
अपने आंगन की सौंधी-सौंधी  मिट्टी लिखी है
कल सपने मे मुझको घर की मिट्टी दिखी है
फिर  कलम उठाकर मैने इक चिठ्ठी लिखी है

झर-झर बरसे वो मीठा सावन लिखा है
कल-कल झरने थे मनभावन लिखा है
रिश्ते तो बस मतलब के ही रह गये यहां
राधा-कृष्ण का वो रिश्ता भी था कितना पावन लिखा है

बरसो भूले-भूले  थे स्वाद मिठाई का  हम, पर
लिखते-लिखते जीभ हुई है मिठ्ठी लिखी है
कल सपने मे मुझको घर की मिट्टी दिखी है
फिर  कलम उठाकर मैने इक चिठ्ठी लिखी है


-जितेन्द्र तायल
 मोब. 9456590120

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Saturday 18 July 2015

मेहनत का जहां में .. दूसरा सानी नही











मेहनत का जहां में .. दूसरा सानी नही             
है पसीना खून से बढकर कोई पानी नही
॰॰
भले  ही टूटता हो बदन उसका थकन से
अभी हारा नही है वो, हार उसने मानी नही
॰॰
सर झुका द्रोण का, श्रम था एक्लव्य का
हर किसी का मुकद्दर यहां खानदानी नही
॰॰
खारी पुरवाईयां, गहरी तनहाईयां सब ही हैं यहां
बस मीठे  चश्मे का ही नाम  जिन्दगानी नही
॰॰
   लक्ष्य से दूर हैं, लगते मजबूर हैं
   जब तलक  दिल मे हमने ठानी नही
हाथ थक जायेगा, चोट लग जायेगी
पर पानीयों पे तो तस्वीर बनानी नही


- जितेन्द्र तायल
   मोब. 9456590120

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Friday 10 July 2015

शबनम लबो से टपका दिये तुम











तुम सुबह सवेरे जो भीग  के निकले                            
कितने ही अरमां  इस दिल मे मचले
जमाने का हमको ख्याल जो आया
पागल दिल भी लगा था सम्भलने
पर
शबनम लबो से टपका दिये तुम
सांसे हमारी ही अटका दिये तुम
                         ………………………………..     १

हमको भाने लगी है पुरवाईयां अब
काटे कटती नही है तन्हाईयां अब
बाते करने लगे है सब यार अपने
होने लगी है ……. रुसवाईयां अब

जूं छोटा सा हमको इशारा दिये तुम
आचंल को अपने लटका दिये तुम
पर
सांसे हमारी ही अटका दिये तुम
शबनम लबो से टपका दिये तुम
                       …………………………………   २
याद आ रही हो इबादत से पहले
पास आ रही हो शरारत से पहले
जब आ ही गयी हो........... तो
क्यो जा रही हो महोब्बत से पहले

क्यों हमसे ही ऐसे घबरा दिये तुम
आंचल को अपने सिमटा दिये तुम
पर
सांसे हमारी ही अटका दिये तुम
शबनम लबो से टपका दिये तुम
                       …………………………………   ३


-जितेन्द्र तायल
मोब. 9456590120

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Wednesday 1 July 2015

सोने के खान मिलते है










किसी को बुजुर्गो से सोने के खान मिलते है                  
किसी से विरासत मे बडे सम्मान मिलते है
॰॰
जिन्दगी की राह बताना आसान नही इतना
कम के ही राहो में पुख्ता निशान मिलते है
॰॰                                            
भले ही खो गये जिन्दगीयों की भीड में
पर कम ही अब जिन्दा इंसान मिलते है
॰॰
फल की चिन्ता छोड अगर निज कर्म किया तो         
फिर निश्चित है कि अतुल परिणाम मिलते है
॰॰
यूं सोचना कि कर दिया है कुछ अच्छा ही
जब भी तुम्हे सफर में इल्जाम मिलते है
॰॰
अगर ठान लिया दिल में लडने को तूफानो से
फिर रास्ते भी सज्जन सरल आसान मिलते है

- जितेन्द्र तायल
मोब. 9456590120

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Tuesday 23 June 2015

याद आता है








संग यारो के अमरूद चुराना, याद आता है                                  
बारिश में साईकिल चलाना, याद आता है
खो तो गये है इस नयी जिन्दगी मे पर
क्या खूब था गुजरा जमाना, याद आता है
................
क्या खूब था गुजरा जमाना, याद आता है


क्लास मे वो देर से आना, याद आता है
वो पीछे से सीटी बजाना , याद आता है
यारो की शरारत और फिर वो कयामत
टीचर का चश्मा छिपाना, याद आता है
..................
क्या खूब था गुजरा जमाना, याद आता है

कैन्टीन मे लैक्चर भुलाना, याद आता है
समोसे तीन-तीन मंगाना, याद आता है
वक्त ने भुलाये गीत तो सारे ही , मगर
माह्तम का टेबल बजाना, याद आता है
..................
क्या खूब था गुजरा जमाना, याद आता है

नोट्स की फोटो कराना, याद आता है
साथ पढना और पढाना, याद आता है
क्या मजा, क्या डर परिक्षा का भी था
डर मे ही सिनेमा हो आना, याद आता है
..................
क्या खूब था गुजरा जमाना, याद आता है



 जितेन्द्र तायल
मोब. 9456590120

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Tuesday 16 June 2015

.......सोने खरे रहते है














जब तक हम लोगो के पैरों में पडे रहते है                
सच है की उनकी ही नजरों में गिरे रहते है
॰॰
फलदार होते है अक्सर जो झुकते है अदब से
छांव भी नही देते जो अकड कर खडे रहते है
॰॰ 
गैरत और अकड में अन्तर है बहुत थोडा सा ही
जाना जिसने भी, वो अपने पैरो पर खडे रहते है
॰॰ 
दिल जीत कर जिन्दा है गांधी आज भी यहां
जाने कितने हिटलर इस मिट्टी मे गडे रहते है
॰॰ 
घर छोड रोजी को, शहर में पीले गये हम
पेड से जो जुडे रहे, वो ही पत्ते हरे रहते है
॰॰ 
बदन पर हीरे जड कर नही आता कोई दुनिया में
पर जाने के बाद कुछ नाम तो हीरे से जडे रहते है
॰॰ 
सुना है हर जख्म भर देता है ये वक्त का मरहम
पर मरहम लगा भी हमारे जख्म क्यों हरे रहते है
॰॰ 
झुलस कर काले हो गये है आग मे पड कर सब
और चमक कर निखरते है जो सोने खरे रहते है


जितेन्द्र तायल
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Monday 8 June 2015

............ सिकन्दर हो गये

















जब से पांव हमारे चादर के अन्दर हो गये                    
हम तो बिना जंग के ही सिकन्दर हो गये
॰॰
जमें से कतरे मेहनत के ही पास थे अपने
ऐसे घुले, घुलकर कतरे भी समन्दर हो गये
॰॰
जब से पाया धीरज का नन्हा सा मोती यहां
कुछ न बदला, बस पापी से कलन्दर हो गये
॰॰
जरा हिम्मत कर देख, पतंग की डोरियां भी
तूफान में कश्ती को बाधंने के लगंर हो गये
॰॰
बुरे के खिलाफ बोलना ही जिम्मेदारी है अपनी
शायर नही है, जो गांधी जी के बन्दर हो गये
॰॰
कर यकीन खुद पे, बन्दो की पनाह छोडी जब

अपने आप ऊपर वाले की छ्तरी अन्दर हो गये


-जितेन्द्र तायल
 
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